तमिलनाडु में सरकार-राज्यपाल विवाद मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने तय किए सवाल; एल्गार परिषद मामले में टाली सुनवाई

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मिलनाडु सरकार और राज्यपाल आरएन रवि के बीच चल रहे विवाद को लेकर दायर याचिका पर फैसला सुनाने से पहले सुप्रीम कोर्ट ने अपना रुख साफ किया है। कोर्ट ने मामले में आठ सवाल तैयार किए हैं।

इसमें सवालों में पॉकेट वीटो की अवधारणा, राज्यपाल के अधिकार और विवेक जैसे मुद्दे को लेकर विचार देने के लिए कहा गया है। जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान तमिलनाडु सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी की दलीलें सुनीं।

कोर्ट ने पहला सवाल पूछा कि जब कोई राज्य विधान सभा किसी विधेयक को पारित कर उसे राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए भेजती है और राज्यपाल स्वीकृति रोक लेता है, लेकिन विधेयक को पुनः पारित कर पुनः प्रस्तुत किया जाता है – तो क्या राज्यपाल को उसे एक बार फिर रोकने का अधिकार है? दूसरा यह कि क्या राष्ट्रपति के समक्ष विधेयक प्रस्तुत करने का राज्यपाल का विवेकाधिकार विशिष्ट मामलों तक सीमित है या यह कुछ निर्धारित विषयों से परे भी है? पीठ ने कहा कि वह उन मामलों पर भी विचार करेगी कि जिनके कारण राज्यपाल ने विधेयक को मंजूरी देने के बजाय राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करने का निर्णय लिया।

एक अन्य प्रश्न में पीठ ने कहा कि पॉकेट वीटो की अवधारणा क्या है और क्या यह भारत के सांविधानिक ढांचे में स्थान पाती है? पीठ जांचेगी कि संविधान के अनुच्छेद 200 की व्याख्या कैसे की जाए, जो राज्यपाल को राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने या रोकने का अधिकार देता है। राज्यपाल पुनर्विचार के लिए विधेयक को विधानमंडल को वापस भी भेज सकते हैं या उसमें बदलाव का सुझाव दे सकते हैं।

पीठ ने पूछा कि जब कोई विधेयक राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है और पुनर्विचार के लिए वापस लौटाया जाता है, तो क्या राज्यपाल का यह दायित्व है कि वह विधेयक को विधानमंडल द्वारा पुनः पारित किए जाने पर उसे स्वीकृति प्रदान करें? कोर्ट तमिलनाडु सरकार द्वारा दायर दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जो विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने से इनकार करने पर राज्य विधानसभा और राज्यपाल के बीच लंबे समय से चल रहे विवाद से जुड़ी है।

एल्गार परिषद मामले में सुरेंद्र और ज्योति जगताप की जमानत याचिका पर सुनवाई टली
सुप्रीम कोर्ट ने एल्गार परिषद माओवादी संबंध मामले में गिरफ्तार किए गए अधिवक्ता सुरेंद्र गाडलिंग और कार्यकर्ता ज्योति जगताप की जमानत याचिका पर सुनवाई टाली। न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने कार्यकर्ता महेश राउत की जमानत याचिका को चुनौती देने वाली एनआईए की याचिका पर भी सुनवाई टाल दी। गाडलिंग के वकील ने कहा कि आरोपी मुकदमे में देरी नहीं कर रहा था। जगताप और राउत के वकील ने सुनवाई जल्द करने का अनुरोध किया।

एनआईए की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा कि राउत को जमानत देने का बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश बिल्कुल गलत है। इस पर कोर्ट ने कहा कि वह सभी मामलो में एक साथ सुनवाई करेगी। यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एल्गर परिषद सम्मेलन में कथित तौर पर दिए गए भड़काऊ भाषणों से संबंधित है, जिसके कारण अगले दिन पुणे जिले के कोरेगांव-भीमा में हिंसा भड़क गई थी।

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