रायपुर 11 मार्च 2025.लोक निर्माण विभाग के प्रभारी प्रमुख अभियंता विजय कुमार भतपहरी द्वारा लोक निर्माण विभाग में बहुत सारी अनियमिताएं हो रही हैं जहां करोड़ों रुपए के मस्टर रोल घोटाले पर कोई कार्यवाही जांच पुरी नही हुई, करोड़ों रुपए का बिना टेंडर का ठेका जांच में औपचारिकता पूर्ण जांच आदेश जारी किया गया। दैनिक मासिक श्रमिको को आउटसोर्सिंग करने का सुझाव पत्र अधीनस्थ अधिकारियों द्वारा इनके प्रभार काल में ही किया गया। दुर्ग मुख्य अभियंता पर कोई कार्यवाही इन्होंने नहीं की जो संदेहास्पद है।
इस मनमानी को जारी रखते हुए एक कदम आगे बढ़ कर 2017 तक के दैनिक आकस्मिक श्रमिकों के ईपीएफ़ कटौती का नियम विरुद्धआदेश जारी किया गया है। जिस शासन आदेश 2017 को आधार बनाकर यह निर्देश दिया गया है। उस सी तिर्की के आदेश में कही नही लिखा है कि 2017 तक के दैनिक आकस्मिक श्रमिकों का ईपीएफ कटौती ही किया जाना है अथवा 2017 के बाद विभिन्न वर्षो में रखे दैनिक आकस्मिक श्रमिकों का ईपीएफ़ कटौती नही की जानी है।
ज्ञात हो कि लोक निर्माण विभाग को नए 7 अ का प्रकरण फरवरी 2021 से दिसंबर 2024 तक का ईपीएफ़ विभाग द्वारा दर्ज कर लिया गया है। जिसमें कार्यवाही जल्द प्रारंभ होने की संभावना है। लोक निर्माण विभाग के मंत्री प्रदेश के उपमुख्यमंत्री जो कि स्वयं एक विद्वान उच्च न्यायालय के अधिवक्ता रहे हैं उनके विभाग में ईपीएफ़ के संबंध में इतनी सामान्य सी जानकारी एक उच्च पदस्थ अधिकारी को नहीं होना उनके प्रभार पर अनेक सवाल खड़े करता है। ईएनसी भतपहरि के कारण भविष्य में 2018 से 2025 तक के आकस्मिक श्रमिको का भाग विभागीय भाग जो करोड़ो रु जमा करना होगा। जो राजस्व क्षति है। यदि ईएनसी द्वारा संशोधित आदेश जारी कर वर्तमान कार्यरत 6442 श्रमिकों के अंश दान 12% कटौती कर अनिवार्य रूप से तत्काल ईपीएफ कार्यालय में जमा करने का आदेश जारी किया जाता है तो 20 करोडो रु. वार्षिक, लगभग 83 लाख रु. मासिक लोक निर्माण विभाग कुल राजस्व व्यय में लगभग 10 करोड़ वार्षिक, 42 लाख मासिक बचत कर पायेगा। किसी विभाग में एक बार ईपीएफ़ लागू हो जाता है तो लागू दिवस के पश्चात भविष्य में रखे जाने वाले समस्त नए कर्मचारियो को एवं लागू दिवस के पूर्व निरंतर कार्यरत पुराने कर्मचारियो को इसका अनिवार्य लाभ कार्यरत काल तक निरन्तर देने का स्पष्ट कानून है, जिसका पालन न होने पर कठोर कानूनी कार्यवाही का प्रावधान है, जिसकी कार्यवाही सीधे उच्च न्यायालय से की जाती है।
